प्रकृति, आध्यात्मिकता और शांति का सामंजस्य: जहां आशीर्वाद शांति में एकजुट होते हैं।
शिक्षा, साहित्य और धार्मिक द्रष्टि से रतनगढ़की सर्वदा विशिष्ट पहचान रही है, अपराकाशी के नाम से प्रसिद्ध यह नगरी मंदिरों की नगरी है | अपनी-अपनी विशिष्टताओ से प्रसिद्धी प्राप्त यहाँ के सैकड़ों मंदिर जनमानस को मानवता का सन्देश देते हुए अध्यात्म पथ के पथिक बनाते हैं | जन - जन की आस्था के प्रतीक इन देवालयों में श्री रामभक्त हनुमान जी के कई मंदिर हैं , इन्ही हनुमान मंदिरों की श्रंखला में नव- निर्मित श्री पंचमुखी बालाजी धाम आज नगर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में अपना स्थान बना चुका है | इस पावन धाम के निर्माता श्री पूर्णमल बणसिया के सुपुत्र तथा श्री रामेश्वर लाल बणसिया के दत्तक पुत्र श्री राजेंद्र बणसिया है , जो इस पुण्य स्थल की स्थापना को श्री बालाजी महाराज की कृपा एवम् पूज्य पिताजी का आशीर्वाद मानते हुए ईश्वरीय चमत्कार बताते हैं |
Rajendra Bansia(Sharma) and Bansia(Sharma Family
रतनगढ़ नगर से एक किलोमीटर दूर लिंक रोड पर अवस्थित यह सिद्धपीठ अपने विशाल भवन व् आकर्षक सिंहद्वार से श्रद्धालुओं को बरबस अपनी ओर खींच लेता है| शहरी कोलाहल से दूर यहाँ का शांत वातावरण तथा नयनाभिराम द्रश्यावली आगन्तुको के मन को हर्षित करने वाली है | मंदिर निर्माण का अधिकांश कार्य सुघडित जोधपुरी पत्थरों से हुआ है , जिन्हें हाथों से घडकर तराशा गया है| इस हेतु जोधपुर से दक्ष कारीगर बुलाये गये थे तथा मंदिर के गुम्बज को कलात्मक रूप देने वाले विशेषज्ञ कारीगर नागोर से आये थे | कहा जाता है कि इस प्रकार घड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिर में 800 वर्षो तक किसी प्रकार की मरम्मत की आवश्यकता सामान्यत: नहीं होती|
मंदिर में प्रतिस्थापित मूर्तियों का निर्माण जयपुर के विश्व-ख्याति प्राप्त मूर्ति निर्माता माधव मूर्ति भंडार द्वारा किया गया है | मुख्य गर्भ-गृह में की गई स्वर्ण – जड़ित कारीगरी भी दर्शनीय है | श्वेत संगमरमर से निर्मित गर्भगृह में सुनहरी नक्काशी अद्भुत छटा बिखेरती है तथा इसमें प्राण प्रतिष्ठित श्री पंचमुखी बालाजी महाराज का अत्यंत सुंदर , आकर्षक, मनोहर एवं भव्य विग्रह भक्तो को असीम आनंद व अलोकिक सुख-प्रदान करने वाला है | श्री हनुमान जी के पांच मुखो में वानर मुख कोटि-कोटि सूर्यो के समान प्रकाश करने वाला है , नृसिंह सदृश मुख विकट भीषण एवं उग्र तेज प्रताप युक्त होते हुए भी भयनाशक है, गरुड़ स्वरूपी मुख महान बलशाली एवं तथा समस्त नागो एवं भूत-प्रेतों का नाशक है | शूकर (वाराह) के समान कृष्ण मुख आकाश के समान भासमान है तथा पाताल के वेताल और सकल ज्वरादी रोगों का विनाशक है | भगवान् विष्णु के अवतार हयग्रीव के समान मुख दानवो का नाश करने वाला है | दस भुजाओ में तलवार , त्रिशूल , कलश , कृपाल, परशु , गदा , ढाल , अभयमुद्रा , पात्र आदि है | हनुमानजी का यह विग्रह उस भाव का परिचायक है , जब वे श्री राम व लक्ष्मण को पाताल से अहिरावण के चंगुल से छुड़ाकर लाए, जो उन्हें अपनी इष्ट देवी की बलि चढ़ा रहा था | ये हनुमान जी अपने साधक भक्तो की सर्वकामनापूर्ति करते है|
मुख्य भवन में ही शीश के दानी श्री खाटू श्याम जी , श्री शिव पार्वती एवं श्री गणेश जी महाराज की प्रतिमाएं विराजमान है | भवन की दीवारों पर आकर्षक भित्ति चित्रों से सम्पूर्ण रामकथा चित्रित की गई है , चित्रांकन की सभी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते है | छत के मध्य बना सात घोड़ों के रथ पर सवार श्री सूर्य भगवान का चित्र चित्त को आनंदित किये बिना नहीं रहता | चित्रावली एवं विशाल सिंहद्वार का निर्माण लक्ष्मणगढ़ के सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री भंवरलाल की देखरेख में सम्पन्न हुआ है |
मंदिर के विस्तृत प्रांगन में रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्ज्ति हरी-भरी वाटिका सभी का मनमोह लेती है , इस परिसर में लगे गुलाब , मोगरा , जूही , चमेली , रात की रानी , गुलझारा आदि की सुगन्ध सम्पूर्ण क्षेत्र को जहाँ सुगन्धित करती है वहीं इसमें लगे गुलमोहर ,अशोक , मोरपंख व अन्य हजारों वृक्ष पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाते हुए नयनाभिराम दृश्य उत्पन्न करते है | मंदिर के विशाल भूखंड पर हरीतिमा संवर्धन हेतु अद्भुत पद्धति से निर्मित ‘पॉप अप‘ व ‘ड्रिप इरिगेशन ‘ ( बूंद-बूंद सिंचाई ) से जलापूर्ति की व्यवस्था की गई है , जिसमे कम पानी में अधिक प्रभावी सिंचाई होती है तथा हरी मखमली दूब पर नृत्य करते फव्वारे प्रकृति की सुन्दरता का मधुर आभास कराते है |
धाम में बाहर से पधारे श्रधालुओ की सुविधार्थ मंदिर के ठीक-पीछे विशाल एवं भव्य धर्मशाला का निर्माण भी करवाया गया है , जिसमे 800 वर्ग फुट क्षेत्र के दो बड़े होल, 300 वर्ग फुट क्षेत्र के दो कक्ष, रसोई , भोजनकक्ष तथा आधुनिक सुविधायुक्त शोचालय है | धर्मशाला के प्रथम तल्ले का निर्माण भूमिगत है , जो इस मरुभूमि के अनुकूल है | मंदिर के ठीक बराबर में ही स्थायी यज्ञशाला है तथा मंदिर के सामने उधान में स्व: रामेश्वरलाल जी बणसिया की प्रतिमा स्थापित की गई है |
इस पवित्र धाम के निर्माण से नगर की शोभा में अभिवृद्धि तो हुई ही , साथ ही जन-धन के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है | प्रतिदिन सैकड़ों दर्शनार्थी अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु श्री पंचमुखी बालाजी के दर्शनार्थ यहाँ पहुचते है | पूर्णिमा , मंगलवार , शनिवार व विशेष अवसरों पर तो लिंक रोड पर आबालवृद्ध स्त्री-पुरुषो का ताँता लगा रहता है और जंगल में मंगल का वातावरण स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है| रतनगढ़ कस्बे में श्री राजेंद्र बणसिया द्वारा निर्मित श्री पंचमुखी बालाजी धाम ने यहाँ के निवासियों की धार्मिक भावना को उच्चता प्रदान की है | अल्प समय में ही धाम के प्रति जन- समूह की बढती आस्था को देखकर यह विश्वाश दृढ होता है कि समाज में अध्यात्म दर्शन की प्रेरणा उत्पन्न करने में ऐसे पावन स्थलों का अपना विशेष महत्व है तथा इनसे आत्मशांति एवं ज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है |
सुख सदन धन्वन्तरि रतनगढ़ ( राज. )